बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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हिन्दी काव्य का इतिहास
प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
अथवा
रीतिकालीन रीतिमुक्त कवियों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा का एक अन्य नाम स्वच्छन्द काव्यधारा भी है। स्मरणीय तथ्य यह है कि स्वच्छन्द काव्यधारा से तात्पर्य उस काव्यधारा से है जो प्राचीन रूढ़ियों एवं परम्पराओं का त्याग करके अपने स्वतन्त्र मार्ग पर बढ़ी है। ज्ञान के क्षेत्र की भाँति कला के क्षेत्र में भी नियमों के अनुसर्ता और स्वानुभूति के उन्मुक्त उद्माता दो प्रकार के मनीसी प्रवेश करते हैं। प्रथम वर्ग में मनीसी कला के बाह्य रूप सज्जा, चयन और श्रेष्ठता पर अधिक बल देते हैं तो दूसरे वर्ग अनुभूति के आवेग गण रूप को, सहज अभिव्यक्ति को महान कार्य मानते हैं। प्रथम पक्ष की कला दृष्टि अनुपास का फल होती है तो दूसरी हृदय निस्तत अकृतिम अभिव्यक्ति। रीतिकालीन रीतिमुक्त कवि दूसरे अर्थात् हृदय निस्तत अकृतिम अभिव्यक्त करने वालों की श्रेणी में आते हैं।
रीतिकालीन रीतिमुक्त कवियों का परिचय और वैशिष्ट्य - रीतिकालीन रीतिमुक्त कवियों में आलम, घनानन्द, बोधा और ठाकुर इन चार कवियों को प्रमुख स्थान प्राप्त है। इन चारों कवियों के काव्य की सामान्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
(1) इनका काव्य आन्तरिक अनुभूतियों का काव्य है। अतः इसमें भावावेग का उच्छल प्रवाह आद्यंत मिलता है।
(2) इनका काव्य प्रमुखतः आत्मप्रधान और व्यक्तिपरक है। ये कवि बाह्य जगत को उतना महत्व नहीं दे सके जितना कि अपने आपको।
(3) इन कवियों का काव्य सभी प्रकार की रूढ़ियों से मुक्त काव्य है। फलतः इनके द्वारा रचित काव्य में अभिनवता और अद्भुत तत्व दोनों ही सहज रीति से समाविष्ट हो गये है।
(4) अभिव्यंजना के धरातल पर इन कवियों का काव्य सांकेतिक और व्यंजना प्रधान है। परिणामतः यत्र-तत्र रहस्यात्मकता का पुट मिलता है।
(5) इनके काव्य में कल्पना और असाधारणता का प्राचुर्य मिलता है।
(6) रीतिकाल के इन रीतिमुक्त कवियों का काव्य भाव प्रधान अधिक और रूप प्रधान कम है। कवि की प्रवृत्ति अपने हृदय के पर्त खोलने की अधिक रही है। इन्होंने अपनी उक्ति को सजाने- सँवारने का काम कम किया है या कहें कि बिल्कुल नहीं किया हैं।
इन प्रवृत्तियों के पोषक उपर्युक्त चारों कवियों के काव्य-वैशिष्ट्य का परिचय इस प्रकार दिया जा सकता है -
(1) आलम - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास में दो आलम स्वीकार किये हैं एक तो अकबर के समसामायिक और दूसरे औरंगजेब के पुत्र मुअज्जम के आश्रित। प्रेमाख्यान प्रबन्ध काव्य 'माधवनल कामकंदला' को उन्होंने पहले आलम की रचना माना है और 'आलम के लिए' को दूसरे आलम की रचना स्थिर किया है। अब 'स्याम सनेही' और 'सुदामा चरित' दो रचनाएँ और प्रकाश में आ गयी है। शुक्ल जी के अनुसार प्रबन्धकार आलम और हैं" तथा मुक्तककार आलम और काव्य रूप और शैली की भिन्नता इस मान्यता के मूल में है। जिन्हें इस धारा का 'आलम माना गया है, वे शृंगार रस के प्रसिद्ध कवि थे। उन्होंने प्रेमभाव और रसिकता के सम्बन्ध में अनेक मौलिक उक्तियाँ कही हैं। इन्हें 'शेख' नामक रंगरेजिन से प्रेम था। जब एक बार आलम की लिखी हुई यह पंक्ति "कनक छरी सी कामिनी काहे को कोटि छीन मूल से धुलाई के लिए गई उनकी पगड़ी की गाँठ में बँधी चली गयी तो शेख ने उसकी दूसरी पंक्ति में लिखकर आलम के पास भेज दी। पंक्ति यह थी कटि को कंचुन कटि के कुचन मध्य धरि दीन।' बस फिर क्या था आलम शेख पर पूरी तरह आसक्त हो गये और तरंगाकुल मानस रचना कार्य में प्रवृत्त हो गये। आलम शृंगार के सफल कवि माने जाने लगे क्योंकि उन्होंने रसिकता का सागर हिल्लोलित कर दिया था। आलम रतिकाल में होकर भी रति की परिपाटी से अलग कविता किया करते थे। आचार्य शुक्ल ने इनके विषय में ठीक ही लिखा है कि, "ये प्रेमोन्नत कवि थे और अपनी तरंग के अनुसार रचना करते थे। इसी से इनकी रचनाओं में हृदय तत्व की प्रधानता है। प्रेम की पीर या इश्क का दर्द इनके एक- एक काव्य से भरा पड़ा है। श्रृंगार रस की ऐसी उन्मादमयी उक्तियाँ इनकी रचनाओं में मिलती हैं कि पाठक और स्रोता उनमें लीन हो जाते हैं।' प्रेम की तन्मयता के कारण आलम की गणना 'रसखान' और घनानन्द की कोटि में की जानी चाहिए।
वास्तव में आलम के काव्य में न तो रीतिबद्ध कवियों का विलास प्रेरित शृंगार है और न ऊहाँ व अतिशयोक्ति गर्भित वर्णन ही है। उसमें शब्द चमत्कार और शारीरिक सौन्दर्य का गहन निरूपण नहीं है। इन सबकी अपेक्षा आलम के शृंगार वर्णन में हृदय तत्व की प्रधानता है। हृदय तत्व की प्रधानता के कारण ही आलम का श्रृंगार वर्णन प्रेम की सूक्ष्म व्यंजनाओं से युक्त है जबकि रीति की परिपाटी पर रचना करने वाले कवियों के काव्य मे प्रेम के नाम पर विलास प्रवाह दिखाई देता है। शृंगार के दो पक्ष होते है संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार। इन दोनों ही रूपों में आलम ने अपने मनोगत भावों को अभिव्यक्त किया है। 'आलम' के श्रृंगार के रसास्वादन के लिए उनकी 'आलम- केलि रचना को लिया जा सकता है। संयोग श्रृंगार के वर्णन में आलम ने प्राकृतिक सुषमा और रूप- सौन्दर्य का वर्णन किया है। कुछ पद ऐसे भी हैं जो मिलन के प्रसंगों को चित्रित करते हैं। इनमें रीति कवियों जैसा क्रीड़ा व्यापार नहीं है, वरन् एक उत्सुकतापूर्ण हृदयों का वर्णन सम्मिलित वर्णित है। आलम ने शृंगार के संयोग पक्ष में यमुना के तटवर्ती कुंजों के सौन्दर्य व कृष्ण की रूप छटा का वर्णन किया है।
आलम द्वारा किया गया वियोग वर्णन सर्वोपरि है। यह संयोग की तुलना में अधिक मार्मिक और प्रभावशाली बन पड़ा है। वियोग वर्णन में आलम ने 'प्रेम की पीर व 'दर्दे इश्क' को अधिक महत्व दिया है। आलम की वक्रोक्तियों का व्यंग्य सीधा हृदय को प्रभावित करता है। विरह की तीव्रतानुभूति के दौरान आलम ने प्रतीक्षा, स्मृति, विवशता और दीनता सी मनःस्थितियों का चित्रण भी बड़े मनोयोग से किया है। प्रतीक्षारत् नायिका जब अपने प्रिय की स्मृति से गुजरती है तब उसकी मनस्थिति कुछ इस प्रकार की हो जाती है जो निम्नांकित पंक्तियों में 'स्मृति - मनोदशा' के रूप में वर्णित है
जल थल कीन्हें बिहार अनेकन ताथल काँकरी बैठि चुन्यौ करै।
जा रचना सौं करी बहु बातन ता रसना सौ चरित्र गुन्यौं करै॥
आलम जौन से कुंजन में करी केलि वहाँ अब सीस धुन्यौ करें।
नैनन में सो सदा रहते तिनकी कान्ह कहानी सुन्यौ करे।
संक्षेप में कह सकते हैं कि आलम प्रेमी जीव थे उनका हृदय प्रेम रस से सराबोर था। उनके मुक्तक काव्य में वे प्रेम का अनुभूति प्रवण रूप मिलता है तो प्रबन्धों में लोकोपकारी रूप। इस प्रकार दोनों प्रकार के प्रेम में कवि आलम प्रेम भाव की व्यापकता और पूर्णता के साथ हमारे समक्ष उपस्थित होते हैं। प्रधानतः आलम का प्रेम आन्तरिक अनुभूतिपरक, अभिलाषा प्रधान और प्रगाढ़ है। अन्तर्मुखी वृत्ति के कवि होने के कारण आलम का प्रेम भावनामय अधिक है।
(2) घनानन्द - घनानन्द रीतिकाल की स्च्छन्द काव्यधारा के कवि हैं। रचना करते समय उन्होंने काव्यशास्त्रीय नियमों के बन्धनों को स्वीकार नहीं किया है। कवि कोई भी हो, किसी भी युग का हो, उसका काव्य उसकी गहन अनुभूतियों का द्योतक होता है। घनानन्द भी ऐसे ही कवि हैं। वे वियोग श्रृंगार के मुख्य कवि हैं। प्रेमी की पीर लेकर इनकी वाणी का प्रादुर्भाव हुआ है। प्रेममार्ग का ऐसा धीर और प्रवीण पथिक तथा जबांदानी का ऐसा दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ। अतः स्पष्ट है कि वियोग श्रृंगार का ऐसा चितेरा, प्रेम की पीर जानने वाला तथा संयोग में भी वियोग की पीड़ा को अनुभव करने वाला घनानन्द की पीर को जानने वाला तथा संयोग में भी वियोग की पीड़ा को अनुभव करने वाला घनानन्द जैसा अन्य कवि नहीं हुआ है घनानन्द ने अपने काव्य में मानव हृदय के सूक्ष्म से सूक्ष्म भावों को सहज अभिव्यक्ति दी है। इनकी तरह हृदय के गहन तल की खोज कोई सामान्य कवि नहीं कर सकता है। प्रिय के वियोग में प्रेमी की क्या दशा होती है? प्रेमजन्य पीड़ा में कैसा दर्द होता है तथा प्रिय मिलन की उत्कंठा में वियोगी किस तरह पल-प्रति-पल गिनता है? यह सब घनानन्द भली-भाँति जानते हैं।
घनानन्द का सौन्दर्य-चित्रण भी अपने-आप में अनूठा बन पड़ा है। उन्होंने अपनी प्राणप्रिया सुजान के स्वरूप को विविध छवियों में अंकित किया है। उनका विश्वास यह नहीं था कि प्रिया के अंग प्रत्यंगों को अलग-अलग चित्रित किया जाये, वरन् वे तो यही चाहते थे कि उनकी सुजान की रमणीयता समस्त अंग के रूप में प्रस्तुत की जाये। सुजान के रूप लावण्य, यौवन और उसकी क्रान्ति एवं अंग सौन्दर्य को घनानन्द ने अपनी कलम से चित्रित किया है, जैसे
"स्याम घटा लिपटी घिर बीज कि सौहे अमावस - अंग उज्यारी
धूम के पुंज में ज्वाल की माल सी पै दृग सीतलता सुखकारी ॥
कै छकि छायो सिंगार निहार सुजान, तिया तन दीपति प्यारी।
केसी फबी घनानन्द चौपानि सौ पहिरि चुनी सांवरी सारी ॥
डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना के मतानुसार, “घनानन्द हिन्दी के सर्वोत्कृष्ट प्रेमी कवि हैं। इनकी कविता प्रेमोद्गारों की अक्षय निधि है और हिन्दी काव्य की चिरस्थायी सम्पत्ति है। इनकी प्रेम- व्यंजना में इतनी आकुलता, इतनी व्यथा एवं इतनी पीड़ा है कि कठोर से कठोर स्रोता एवं पाठक भी द्रवित हो जाते हैं और उसमें संयोग-सुख की इतनी मादकता व उल्लास भावना भी भरी हुई है कि वह सहृदयों को अनायास आनन्द-विभोर कर देती है। घनानन्द लौकिक हो गया था। घनानन्द अपनी प्रेम साधना के मार्ग को अत्यन्त सीधा तथा सरल मानते हुए कहते हैं
अति सूधो सनेह को मारग है जहाँ नेक सयानक बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलै तजि आपनुपा झिककैं कपटी के निसांक नहीं।
घनानन्द प्यारे सुजान सुनौ इत एक तै दूसरो आंक नहीं।
तुम कौन घौ पाटी पढ़े हो लला, मन लेहु पै देहु छटांक नहीं।'
घनानन्द के प्रेम का स्वरूप प्रथम दर्शन जन्य है। उन्होंने जब से रूप को खजाने सुजान को देखा है, तभी से उसके मन में उसके प्रति प्रेम उत्पन्न हो गया। रीतिकाल के अन्य कवियों की भाँति इनका प्रेम शरीर की सीमा से आबद्ध होकर नहीं रह गया है। हाँ, यह उत्पन्न अवश्य शरीर से हुआ है, किन्तु बाद में यह व्यापक हो गया है। घनानन्द का प्रिय आनन्द का बादल है। इनका प्रेम परम सत्ता से है। इसलिए रहस्यवाद की भी झलक आ गयी है। वस्तुतः घनानन्द का प्रेम नैसर्गिक है। उसमें आडम्बर और कृत्रिमता के लिए तनिक भी स्थान नहीं है। ठीक भी है जो स्वाभाविक हो और सहज प्रेम का विश्वासी हो और स्वच्छन्दता का भक्त हो, उसके प्रेम में यह सब आडम्बर आदि के लिए कोई स्थान नहीं होता है। घनानन्द तो अपने स्वच्छन्द और नैसर्गिक प्रेम की व्यंजना करते हुए लिखते हैं-
चाहौ अन चाहौ जान प्यारे पै अनंदघन,
प्रीति रीति विषम स् रोम-रोम स्मी है।
घनानन्द का प्रेम स्वानुभूतिपरक है। उसमें नवीनता है तीव्रता है और सरसता है। यह वह प्रेम है जिसमें नैसर्गिक, सौन्दर्यप्रियता, उदात्तता, कष्ट सहिष्णुता और अनन्यता की मात्रा सर्वोपरि है। घनानन्द का प्रेम स्थूल न होकर सूक्ष्म है।
घनानन्द की भाषा का स्वरूप अपने आप में अनेक विशेषताओं को समाहित किये हुए है। शुद्ध साहित्यिक होते हुए भी उनमे ब्रज का माधुर्य, निजी व्यक्ति का सौन्दर्य, बंकिमता का सौन्दर्य आदि भी समाये हुए हैं। उनके शब्द प्रयोग को पढ़कर ऐसा लगता है कि, "ब्रजभाषा के उच्चतम प्रयोक्ताओं में उनका नाम लेना पड़ेगा। भाषा सम्बन्धी इस वैशिष्ट्य के कारण इनकी भाषा की कोई नकल नहीं कर सकता है। उनकी भाषा में शुद्ध संस्कृत तथा फारसी भाषाओं के शब्दों का तत्समीकरण कर दिया गया है।
घनानन्द की भाषागत विशेषताओं में लाक्षणिकता, चित्रात्मकता, भावानुकूलता, नादसौन्दर्य, 'सामसिकता, वक्रता क्लिष्टात्मकता उक्ति वैचित्र्य तथा मुहावरों आदि का प्रयोग भी दृष्टिगोचर होता हैं। घनानन्द की भाषा का सौन्दर्य उनके उक्ति वैचित्र्य के प्रयोग से और भी अधिक बढ गया है। उनका उक्ति वैचित्र्य हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि है। इनकी उक्तियाँ सूर से भी अधिक मार्मिक तथा विलक्षण है। घनानन्द की भाषा में जितना लोच, जितना माधुर्य मुहावरों के प्रयोग से आया है, उतना अन्य किसी साधन से नहीं। मुहावरों ने उनके काव्य में अर्थ- गाम्भीर्य और मार्मिकता का समावेश कर दिया है।
अतः कह सकते हैं कि घनानन्द की भाषा में जितना शब्द चमत्कार है, उससे कहीं अधिक अर्थ- गाम्भीर्य भी है। उनकी भाषा में लाक्षणिकता, भावानुकूलता, चित्रोपमता तथा सामसिकता आदि ऐसे गुण हैं जो सामान्यतः हर एक कवि में नहीं मिलते हैं। उनकी भाषा में भावों के बोझ को भली- भाँति सम्भाल लिया है। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि उनकी ब्रजभाषा में रसानुकूल कोमलता है, भावानुकूल ऋजुता है, प्रयोगानुकूल लचक है और कथनानुकूल व्यावहारिकता है।'
(3) बोधा - बोधा का वास्तविक नाम बुद्धसेन था और ये महाराजा पन्ना के दरबार में रहा करते थे। ये सभी घनानन्द की तरह सुभान नाम की वैश्य पर आसक्त थे। इन्होंने विरह वारीश नामक ग्रन्थ की रचना की है। बोधा की रचनाओं में रीति कवियों से भिन्न पद्धतियों पर प्रेम-भाव निरूपण हुआ है। इनके पद में प्रेमयुक्त रसपूर्ण और भावुक मन की अभिव्यक्ति है। निश्चय ही इन्होंने अपनी मौज और मस्ती के अनुसार काव्य रचना की है। कहीं-कहीं मौज में आकर इनका प्रेम निरूपण बाजारू ढंग का भी हो गया है इतने पर भी बोधा की रचनाओं को एक भावुक मन की मनोहारिणी तरंगों के रूप में ही स्वीकार किया जाना चाहिए। इनके वियोग वर्णन पर सूफियों के प्रेम की पीर वाले दृष्टिकोण का प्रभाव दिखलाई देता है। जहाँ तक इनकी भाषा का प्रश्न है, वह सरस, स्पष्ट और मुहावरेदार है। रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में, बोधा घनानन्द के गुट का संस्करण प्रतीत होते हैं। स्पष्टीकरण के लिए इनकी कविता की दो पंक्तियाँ देखिए-
जबते बिछरे कबि बोधा हितू तबते उर दाह थिरातो नहीं।
हम कौन-सी पीर कहें अपनी, दिलदार तो कोऊ दिखाई नहीं।
(4) ठाकुर - हिन्दी साहित्य के अन्तर्गत ठाकुर नाम के तीन कवि हुए हैं, किन्तु रीतिमुक्त काव्यधारा के अन्तर्गत जिन ठाकुर का नाम लिया जाता है, उनका जन्म बोरछा (बुन्देलखण्ड) के अन्तर्गत सन् 1823 में हुआ था। उनकी रचनाओं का एक संग्रह 'ठाकुर ठसक' के नाम से प्रकाशित हुआ था। इनकी कविता प्रेम की कविता है और उस पर फारसी का पर्याप्त प्रभाव दिखलाई देता है। इनके सम्बन्ध में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है कि " ठाकुर बहुत ही सच्ची उमंग के कवि थे। इनमें कृत्रिमता का लेश नहीं है। इनके काव्य में न तो कहीं व्यर्थ का शब्दाडम्बर है, न कल्पना की ऊँची उड़ान है और न अनुभूति के विरुद्ध भावों का उत्कर्ष है। इन्होंने भावों को स्वाभाविक भाषा में उतारा है। वस्तुतः बोलचाल की चलती भाषा में भावों को ज्यों का त्यों सामने रख देना इस कवि का लक्ष्य रहा है। ब्रजभाषा में श्रृंगारी कविता प्रायः स्त्री पात्रों के ही मुख की वाणी होती है। अतः स्थान-स्थान पर लोकोक्तियों का जो सुन्दर विधान ठाकुर ने किया है, इससे उक्तियों में और भी स्वाभाविकता आ गयी है।"
ठाकुर की भाषा में न केवल सहजता और प्रवाह है, अपितु स्वच्छता भी है। ठाकुर कहीं भी शब्दों के चक्कर में नहीं पड़े हैं। इन्होंने प्रेम के सफल निरूपण के साथ-साथ लोक व्यवहार का भी पूरा ईमानदारी से निरूपण किया है। लोक-जीवन के पर्व, त्यौहार और उत्सवों को चित्रित करने वाले ठाकुर के काव्य में कुटिलता, क्षुद्रता, खिन्नता और कविकर्म की कठिनता आदि का निरूपण भी स्थान-स्थान पर किया गया है।
निष्कर्ष - संक्षेप में कह सकते हैं कि हिन्दी साहित्य के रीतिकाल में रीतिमुक्त कवियों ने अपनी स्वच्छन्द मनोवृत्ति के माध्यम से प्रेम और श्रृंगार की सरिता प्रवाहित की है। यह धारा रीतिकालीन साहित्य की विशिष्ट काव्यधारा है। वास्तव में उपर्युक्त चारों ही कवि प्रेम की पीर के चित्रकार और सौन्दर्य के अद्भुत कलाकार रहे हैं।
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- प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
- प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
- प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
- प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
- प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
- प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
- प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
- प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
- प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।